भारत
ॐ गुरु ॐ
जय भारत जय विश्व
जन जागो जन जन जागो
♥️मानव जीवन में अमर जीवन है।♥️
भारत संसार में एक ऐसा स्थान जिसने मनुष्य को यह भान कराया की अमरता ही एक मात्र ऐसा सत्य है जिसे कोई भी शब्दों के द्वारा व्यक्त नही कर सकता फिर भी
वर्तमान द्वापर युग में यह देश और विश्व भरमित है।
जन्म –मृत्यु मात्र शाब्दिक अर्थ का भान मात्र वही समझ पाता जो यह अनुभव कर पाता की स्वास भी मात्र एक ऐसा भ्रम है जिसे नासमझ मन मात्र इतना ही समझ पाता है "स्वास ही जीवन है"
फिर भी योगी कथामृत में यह बात स्पष्ट
रूप से परमहंस योगानन्द ने अपने अनुभव रूपी अमर जीवन में यह स्वीकार की
" अपने शरीर एवं मन का स्वामी बनकर क्रियायोगी अन्ततः " अन्तिम शत्रु"* मृत्यु पर विजय पा लेता है। "
वास्तव में क्या यह बात सही है या नही इस बात को कोई भी व्यक्त नही कर सकता क्योंकि जब भी कोई भी यह तथ्य को कहेगा तब दुनिया के लोग भ्रमित होगे और सोचेंगे की बिना स्वास के जीवन भी है?
विचार ही एक मात्र ऐसी शक्ति है जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को धारण किए हुए है।
योगावतार श्री श्री श्री श्यामा चरण लाहिड़ी ने कहा है " बनत –बनत बनजाए"
वास्तव में प्रत्येक ही लोग शूद्र रूप में जन्म लेते है और धीरे–धीरे वैश्य बनते है जिससे अंतर का मन शुद्ध होता जाए और फिर वास्तविक लक्ष्य में क्षत्रिय बन कर अपने अंतरमन में दृढ़ इच्छा की शक्ति को समेटते है अंततः ब्राह्मण बन जाते है।
यही वह कर्म है जिसके लिए एक परमात्मा ने अपने अनन्त साकार और निराकार रूप को धारण किया है।
यद्यपि वास्तव में कर्तव्य है जिसके तहत हम सभी दुनिया में अनन्त कार्यों को करते है, चाहे किसान,मजदूर यह वह लोगों की भीड़ जो प्रति पल कोई न काम करती है। यह मात्र जीवन में मानसिक वैचारिक विचारों का खेल है। जिसे ध्यानी स्वतः ही अंतर में डूब कर अनुभव कर सकता है।
क्या यह संसार मात्र विचारों का खेल नहीं है जिसे जन जन अपने मन के विचारों के अनुसार जीता है। वास्तव में मन ही वह है जब मौन होता है तब ही यह समझ का भान होता है कि
" मानव जीवन में अमर जीवन है। "
Autobiography of a Yogi में बात मृत्युंजय श्री महावतार अमर अवतार बाबाजी ने कही है कि
‘ अपने शिष्यों को यह भगवदगीता का वह वचन* अवश्य बताना: " स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात।"[इस धर्म का थोड़ा–सा भी साधन जन्म–मृत्यु के चक्र में निहित महान् भय से तुम्हारी रक्षा करेगा।]
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