वर्ण व्यवस्था

 

संसार/दुनिया  में अपितु सब कुछ एक की उपस्थिति को प्रमाणडित करता है,  जिसे  प्रत्येक ही लोग जिसका गुणज्ञान करते है " वह है ईश्वर "

धर्म एक है और 

प्रत्येक ही किसी न किसी धार्मिक विचारधाराओं से जुड़ा है यद्यपि प्रत्येक ही को इस बात का  पता है कि नास्तिक एवं आस्तिक दोनों का बोध मात्र एक से है, ईश्वर है।  

विश्व समाज में  वर्तमान समय द्वापर युग का 324 वर्ष चल रहा है। 

 The Holy Science / कैवल्यदर्शनम,  पुस्तक जिसके रचयिता ज्ञानावतार स्वामी श्री युक्तेश्वर जी है।  इस किताब की भूमिका में श्री स्वामी जी अपने गुरु के गुरु अमर  महाअवतार बाबाजी के आदेश का पालन करते हुए समय गति (मनु संहिता ) का विवरण किया है अपितु आज भी अज्ञानी समाज वास्तविकता से पूर्णता अनभिज्ञ है और वास्तव को मात्र संकुचित दृष्टि से देख पा रहा है। फिर भी यह ब्लॉग पेज उन सभी जन को  असत्य - सत्य  से  बताएगा की किस प्रकार सभी मानव जनों को स्पष्ट अनुभव का भान हो और इस सामान्य सी बात जो समय का सतत प्रमाण करता है कि वर्तमान युग वास्तविक द्वापर युग है।  

यद्यपि मनु संहिता में  जिसका समय में स्पष्ट रूप से बताया गया है की प्रत्येक युग की समय सीमा होती है जैसे - 

कलयुग 👉 100(अवरोही वर्ष )  + 1000 +100 (अरोही वर्ष)  = 1200 

वर्तमान द्वापर युग 👉 200 (अवरोही वर्ष )  + 2000 +200 (अरोही वर्ष) = 2400

 त्रेता युग 👉 300(अवरोही वर्ष )  + 3000 +300 (अरोही वर्ष) = 3600 

सत्य युग 👉 400(अवरोही वर्ष )  + 4000 +400 (अरोही वर्ष) = 4800 

समय का बोध धारण कर ने पर प्रत्येक ही जिज्ञासु का मति भ्र्म स्वतः ही नष्ट होने लगता है जिससे प्रत्येक ही की समझ का उत्तरोतर विकास होने लगता है - क्रियायोग ध्यान के माध्यम से

💥 जन जागो जन - जन जागो 💖

वर्ण व्यवस्था 

जातिये वर्गीकरण का आधार मनुष्य के मन  की आतंरिक अवस्था के अनुसार निरूपित किया जाता है। 

यद्यपि दीर्घ अतीत से अज्ञनता एवं स्वार्थ के वशीभूत  हो जातीय वर्गीकरण का आधार सांसारिक कार्यो के नुसार स्थापित कर , एक मानव समाज को खंडित कर दिया गया है ।  जिसके परिणाम स्वरुप समाज में भेद -भाव , ऊंच-नीच और निंदनीय विचारों से समाज में विघटन  रूप में प्रदर्शित होने लगा।  मूलतः समाज चार भागो में विभक्त है 

 शूद्र*    वैश्य*   क्षत्रिय*   ब्राह्मण*

अपितु लोगो ने इस चार स्तरीय वर्ण वर्गीकरण को संख्या ,हित और सीमित एकता को व्यक्त करने हेतु असंख्य उपजातियो का गठन कर , समाज को अधिकतम स्तर तक छिन्न -भिन्न कर दिया।  इस व्यर्थ के विघटन का अधिकतम लाभ ( राजनीतिज्ञ , राजनीतिज्ञ पार्टी (समूह ) और वह विशेष जन जो वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है) प्राप्त करने के लिए स्वयं को श्रेष्ठ बनाने / बताने  के लिए , वर्ग विशेष का गुणगान करते रहते है और स्वार्थ साधते है।  वर्ग विभिन्ता भी एक महत्वपूर्ण अवरोध है जिस कारण  समाज का चतुर्मुखी विकास गाति सामान रूप से जन -जन  को विकसित नहीं कर पाती है।  जिसका परिणाम समाज आर्थिक असमानता के विचारो से ग्रसित होता है।  समाज को आर्थिक विषमता को पोषित करने वाला अति महत्वपूर्ण कारण /कारक जातीय वर्गीकरण है। सत्य सरलतम है और स्वीकार्य होता है प्रत्येक नागरिकों को चाहे वह विश्व के किसी भी देश का हो।   

जाति बंधन से बंधे रहना / मुक्त रखना प्रत्येक की स्वइच्छा  है। 

एक मानव समाज में सभी मनुष्य में , जातियाँ और उपजातियाँ में सम्पनता और निर्धनता व्यप्त है। आरक्षण वह सुविधा है जिसे समाज में सभी चाहते है लेकिन खेदजनक यह है कि जाति /उपजाति आधारित होना।  अपितु इस व्यवस्था का लाभ का आधार मात्र जातियता  तक होना नीतिगत नहीं प्रतीत होता है।  आरक्षण का हकदार वह प्रत्येक जन है चाहे वह सामाजिक जातिये  वर्गीकरण के किसी भी वर्ग का हो।  

संसार बुद्धिजीवियों से भरा है और प्रत्येक तत्पर है ,कार्यरत है  और आशावान है देश के विकास के लिए।  देश का विकास होना सुनिश्चित है। बस हम (आप +मैं ) सभी को अपने दिल में भारत , विश्व को सम्पनता प्राप्त करने वाला महान एकता का बल का स्मरण रखना है,  की एक मानव समाज, विश्व अनंत भागो में बांटा हो तब भी प्रत्येक यह समझ रखता है कि मानव समाज  एक जाति है, भले ही वर्गीकृत है वैसे ही विश्व एक देश है मानव के लिए भले ही वह किसी भी देश का नागरिक हो।  

आरक्षण लाभप्रद है लेकिन आरक्षण व्यवस्था तभी समाज के लिए हितकारी है, जब परिस्थिति / स्थिति के अनुसार आरक्षणरथी / लाभार्थी चयनित हो सके।  

यादपि प्रत्येक चयनकर्ता जो चयन करने का अधिकारी हो और वह किसी भी जाति का भारतीय हो उस की समझ मात्र इतनी ही हो की भारत का नागरिक हो। भारत की भारतीयता जो प्रत्येक को इस बात का ऋणी कर देती / देता है कि किस प्रकार आजादी के परचम को हमारे पूर्वजो ने अपने आत्मा बल से साकार कर हम (आप +मैं ) सभी को प्रदान किया। 

एक जुट समाज स्वतः ही प्रत्येक जीवनक्षेत्र को सुरक्षित  करता है। 

लगभग सभी धार्मिक विचारधाराएं जो हिंदू /ईसाई /इस्लाम /बौद्ध /जैनी /यहूदी और न जाने कितने ही असंख्य संप्रदाय या विवरण  में बंटी है और इन सभी धार्मिक वैचारिक विचारों को मात्र शीतल जीवन को नदियों के समान देखे तो प्रत्येक ही इस बात का भान कर सकेगा की जो लोग ईश्वर की कल्पना को अधिक - अधिक शब्दों से व्यक्त करते है और सुनने वाला जो मात्र इतना ही सुन और समझ पाता है कि " ईश्वर एक है "  फिर भी ऐसे अज्ञानी जनो के आशीर्वाद को पाने के लिए भीड़ उमड़ पडती है और मूढ़ जनो को मात्र कुछ शब्दों से संतुष्ट कर प्रत्येक ही कथावाचक ,कुरान प्रवर्तक ,बाइबिल ज्ञाता और लगभग सभी वो जन जिनका व्यवसाय ही मात्र इतना हो की किस बहुमुखी प्रतिभा को साधकर आने -जाने वाले श्रोताओं के मन के तार को छिन्न-भिन्न कर , ईश्वर का ज्ञान व्यक्त  करते है फिर भी प्रत्येक ही धार्मिक विचारधाराओं के अज्ञानी जन मात्र इतना भी समझ को नहीं पा रहें है, की ऐसे ये लोग मात्र शाब्दिक शब्दों से तरह -तरह वचनो से भर्मित चित वाले मनो को लगभग ऐसे  दलदल में झोके जा रहे है जिसका न कोई सार है न प्रमाण अपितु प्रत्येक पुजारी /पंडित /कुरानी /मौलवी /पादरी और न जाने कितने लोग जिनकी समझ का स्तर इतना निकृष्ट है की परमात्मा के द्वारा कही जा रही बातों को (वेद ,पुराण ,श्री मद भगवद गीता,बाइबिल ,कुरान ,  बौद्ध वचन और जैनी प्रवचन जो सभी को तोड़ने के लिए कहे जा रहे है,  अपने मनो भाव के अनुसार कहने पर मूढ़ की जमात जो धन का दान करते है और मरने और मारने के लिए अड़े रहते है।    


















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