कैवल्य दर्शनम पेज नं - 4 से 5 पेज नं - 6 से 7 पेज नं - 8 से 9 पेज नं - 10 से 11 पेज नं - 12 से 13 पेज नं - 14 से 15 पेज नं - 16 से 17 पेज नं - 18 से 19 पेज नं - 20 से 21 पेज नं - 22 से 23 जन जागो जन -जन जागो। दुनिया में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई , बौधि,जैनी, आदि-आदि धार्मिक विचारधाराएं को धारण किये हुआ चित मात्र वैहिक विचार को मंथन करता रहता है । यह की सब इंसान। यही सबसे अच्छी बात है। सब को पता है। सत्य सरल है। धर्म ( मानसिक सच्चरित्रता ) एक है। चाहे सविस्तार या उपसंहार एक है। ईश्वर एक है। श्री गीता में विदित है, मन का प्रसार ही जगत है। मन मौन है। और वाचाल वैचारिक विचारों स्तर पर भर्मित ही करता है। आप इस बात का विचार करें , जन - जन को लोकतंत्र से क्या लाभ ? क्या असंभव है, कुछ नहीं यही बात का गुणी जन है। जन - जन है।