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Showing posts from December, 2023

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जनता जन - जन के साथ से जनता का अस्तित्व है।  समाज की उत्पति का  आधार जनता है।  समाज में सामंजस /वैमनस्य  की स्थिति की पूर्ण जिम्मेदार जनता है।   सामान्य शब्दो में कहे की जनता है हम। ( हम = आप और मैं ) जनता एक ही होती है चाहे वह भारत की हो ,पकिस्तान की हो , चीन की हो , फ्रांस की हो , अमेरिका की हो  या विश्व के किसी भी देश या भूभाग की हो।   जनता सदैव शान्ति ,संबृद्धि और उन्नति ही चाहती है।  जनता अटूट है।   यद्यपि  कुछ विशेष जन धार्मिक विचारधारा , जातियात  , क्षेत्रवादिता और स्वार्थी विचारो को संजोकर भर्म वश अनेकता की एकता (जनता ) के महानतम बल को अस्थिर करने के प्रयासवान  बनने को स्वयं को बाध्य किये होते है।  स्वयं के अल्प लाभ के लिए ( भौतिक सम्पदा और श्रेष्ठता ) और सीमित जनो व सीमित क्षेत्र को ही अपना समझते / मानते है। कुछ  विशेष जनों  के कारण एक मानव समाज जो दीर्घकाल से अज्ञनता और स्वार्थता के द्वारा उत्पन विघटन को पहले से संजोए है।  जिसके कारण साधारण जनता का शोषण होता रहता है। सुख -संबृद्धि और निरोग समाज के गठन (स्थापना ) का पूर्ण उत्तरदायी जनता है।  क्योंकि जन - जन के विचा

जन की बात

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जय भारत जय विश्व  यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत, अभि-उत्थानम् अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम् । परित्राणाय साधूनां मैं ,उस प्रभु की सेवा करता हूँ ,जिसे अज्ञानी लोग, मनुष्य कहते है।-  स्वामी विवेकानंद  सत्य सरल है। हृदयस्थ मित्रों ,                        धर्म ( मानसिक सतच्चरितता) एक है।   जन -जन के लिए चाहे आप किसी भी धार्मिक विचारधाराओं के मानने वाले हो   हिन्दू ,ईसाई ,इस्लाम ,सिख ,बौद्ध ,जैन ,यहूदी आदि -आदि।   के अनुनायी हो और किसी भी जाति /वर्ग से सम्बंधित हो।   राजनीति के  द्वारा सत्ता पाना आसान है निकट बीते समय में राजनैतिक  पार्टियों ने भ्रम(जुमला ) से विकास के नाम पर, जाल फैला कर जिस प्रकार भारतीयों को गुमराह किया जा रहा है मात्र यह बात उन लोगों के लिए ही सही है जो भेद -विभेद को तक ही सिमित है और सत्त्ता को पाने के लिए जनता में विद्वेष फैला रहे है , के सहारे सत्त्ता पा ले रहे है।  फिर भी प्रत्येक ही ज्ञानी है और इस बात की समझ को रखता होगा कि मानव जीवन में अमर जीवन है।  यदपि यह बात सही है की एक परमेश्वर को सभी शब्दों से अज्ञानी / ज्ञानी जन गाते है फिर भी आम जन जो

मानव जीवन में अमर जीवन है।

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जातियता से जुड़े रहना या भूल जाना प्रत्येक इंसान की अपनी इच्छा है।  विचार तो करना ही पड़ेगा की यह समाज के लिए हितकारी है या नहीं।   मनुष्य बुद्धिमान है।    इच्छा काया,इच्छा  माया ,इच्छा जग(दोस्त ) उपजाया।  कह कबीर ये चित विवर्चित ताका पार न पाया।  ♥️जन जागो जन – जन जागो💗 हृदयस्थ साथियों, प्रत्येक का स्वागत है ।  भारत  वह  है स्थान है जिसे शब्दों के द्वारा व्यक्त करना संभव नहीं है, जो जीवन और समय के मध्य आत्मा/परमात्मा के उस भाग को प्रत्येक जिज्ञासु, साधक,योगी जो मनुष्य के उस प्रतिबिंब को दिखाता है, उन जन को जो वास्तविक रूप में महान मानव जीवन को समय और समझ (वैचारिक लहरें) जो मन का पोषण करती है –प्रतिक्रिया/क्रिया के द्वारा अपितु प्रत्येक ही मनुष्य मात्र वैचारिक तरंगों का अधिकतम – न्यूनतम और वैचारिक तरंगों का वैचारिक बातों का भराव पाता है, मन में।  फिर भी प्रत्येक जन्म–मृत्यु के मध्य मानव जीवन का रसपान करने लगता है,उसकी समझ का स्तर सकारात्मक दशा एवं दिशा की ओर होने लगता है और शेष समाज मात्र स्वप्न सा प्रतीत होने लगता है।  अतीत में अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपना एक