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जनता जन - जन के साथ से जनता का अस्तित्व है। समाज की उत्पति का आधार जनता है। समाज में सामंजस /वैमनस्य की स्थिति की पूर्ण जिम्मेदार जनता है। सामान्य शब्दो में कहे की जनता है हम। ( हम = आप और मैं ) जनता एक ही होती है चाहे वह भारत की हो ,पकिस्तान की हो , चीन की हो , फ्रांस की हो , अमेरिका की हो या विश्व के किसी भी देश या भूभाग की हो। जनता सदैव शान्ति ,संबृद्धि और उन्नति ही चाहती है। जनता अटूट है। यद्यपि कुछ विशेष जन धार्मिक विचारधारा , जातियात , क्षेत्रवादिता और स्वार्थी विचारो को संजोकर भर्म वश अनेकता की एकता (जनता ) के महानतम बल को अस्थिर करने के प्रयासवान बनने को स्वयं को बाध्य किये होते है। स्वयं के अल्प लाभ के लिए ( भौतिक सम्पदा और श्रेष्ठता ) और सीमित जनो व सीमित क्षेत्र को ही अपना समझते / मानते है। कुछ विशेष जनों के कारण एक मानव समाज जो दीर्घकाल से अज्ञनता और स्वार्थता के द्वारा उत्पन विघटन को पहले से संजोए है। जिसके कारण साधारण जनता का शोषण होता रहता है। सुख -संबृद्धि और निरोग समाज के गठन (स्थापना ) का पूर्ण उत्तरदायी जनता है। क्योंकि जन - जन के विचा