जन की बात
ॐ परब्रह्मणे नमः जय भारत जय विश्व जन जागो जन जन जागो
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत, अभि-उत्थानम् अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम् । परित्राणाय साधूनां
मैं ,उस प्रभु की सेवा करता हूँ ,जिसे अज्ञानी लोग, मनुष्य कहते है।- स्वामी विवेकानंद
सत्य सरल है।
हृदयस्थ मित्रों ,
धर्म ( मानसिक सच्चरित्रता ) एक है। जन -जन के लिए चाहे आप किसी भी धार्मिक विचारधाराओं के मानने वाले हो हिन्दू ,ईसाई ,इस्लाम ,सिख ,बौद्ध ,जैन ,यहूदी आदि -आदि। के अनुनायी हो और किसी भी जाति /वर्ग से सम्बंधित हो। राजनीति के द्वारा सत्ता पाना आसान है निकट बीते समय में राजनैतिक पार्टियों ने भ्रम(जुमला ) से विकास के नाम पर, जाल फैला कर जिस प्रकार भारतीयों को गुमराह किया जा रहा है मात्र यह बात उन लोगों के लिए ही सही है जो भेद -विभेद को तक ही सिमित है और सत्त्ता को पाने के लिए जनता में विद्वेष फैला रहे है , के सहारे सत्त्ता पा ले रहे है। फिर भी प्रत्येक ही ज्ञानी है और इस बात की समझ को रखता होगा कि मानव जीवन में अमर जीवन है। यदपि यह बात सही है की एक परमेश्वर को सभी शब्दों से अज्ञानी / ज्ञानी जन गाते है फिर भी आम जन जो उस परमात्मा को शब्दों के द्वारा सुनना चाहता है तो ऐसे लोगों को कौन बताये की
कण - कण में ईश्वर है और सब में है।
सामान्यता सभी जन- जन (जनता ) जातियता को मात्र सिमित होकर देख पा रहे है फिर भी यह बात सत्य है की " जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन पाई वैसी " मात्र यही भेद -विभेद है दुनिया में फैले सभी धार्मिक विचारधारओं में हिन्दू ,ईसाई ,इस्लाम ,यहूदी ,बौधि, जैनी आदि -आदि सभी में है। लोग एकता को समझ पा रहे है। फिर भी वर्तमान द्वापर युग जो इस बात का प्रकाश फैला रहा है की लोग इस बात को समझे और अनुभव करे की हम (आप +मैं )सब एक है। जनता को जिस विकास का सपना दिखाया जा रहा है यकीनन सामजिक विघटन है। जिससे विकास नहीं विनाश ही प्राप्त होगा। जनता को प्रचार और भीड़ के द्वारा मात्र कुछ समय के लिए भ्रामित किया जा सकता है , सदैव के लिए नहीं।
धर्म ने ही बताया और सिखाया कि "अहिंसा परमो धर्म: "
बाकी सब धार्मिक विचारधाराएं है जो विश्व में हिन्दू /ईसाई /इस्लाम /सिख /यहूदी /जैनी /बौद्ध अन्य असंख्य नामों से विश्व के मानव समाज रूपी सागर में जोड़े रखती है।
सभी धार्मिक विचारधाराओं का सार एक है -
" ईश्वर एक है "
जन जागो जन - जन जागो और विचार करो की " अहिंसा परमो धर्म " का सूत्र वास्तविक उन्नति को जन - जन को प्राप्त कराता है।
- राजनीति -
" शासन व नीति से प्रशासन के द्वारा सर्वजन हिताय - सर्वजन सुखाय का जन -जन को अनुभव को कराना ही सच्ची राजनीति है।"
शब्दों से ही नही क्योंकि अनुभव ही जीवन है और विचार को शब्दों (भाषा )द्वारा वक्त्य करना मानव जीवन है। मनुष्यों की एकता ही मानव समाज का निर्माण करती है। एकता में अनेकता ही विश्व /ब्रह्माण्ड को प्रकट करता है। राजनीति वह आचरण है जिसके द्वारा एक ही नही अपितु एक - एक को सम्पन किया जा सकता है। आचरण का भान बनाने के वास्ते धर्मनीति का बोध सतत ग्रहण करने की लिए प्रत्येक मानव सक्षम है।
प्रत्येक विचारवान है,और समाज के हित के लिए सजग बने रहने का प्रयासी भी है। और प्रयत्न भी करता है। प्रत्येक की यह चाहत है कि कैसे समाज को सुव्यवस्थित करें। जिससे सभी के लिए स्वच्छ ,शालीन और उन्नत सामाजिक वातावरण का निर्माण हो सकें। कारण भी है ऐसा सोचने वाला भी इसी समाज में एक समाज होता है। यह बात भी सभी समझते है कि सब का कल्याण से स्वयं का कल्याण भी होना है,प्रत्येक जन यह बात समझ सकता है। सभी ज्ञानी और विचारशील है। विकास की प्रक्रिया स्वचालित है ।
भारत का अमर योग विज्ञान ( क्रियायोग विज्ञान / राजयोग )मानव को वही अनुभव कराता है जो वह है।
जो शब्दों से अव्यक्त है।
आज जिस प्रकार विकास के नाम पर राजनीतिज्ञ जिस सत्त्ता सुख का रसास्वादन कर रहे है और विकास को गा रहे है। इस गान में भी यह समझ को समझ ही रहे होंगे कि जनता का कितना पैसा उन जनों के लिए खर्च हो रहा है जो नेतागिरी कर रहे है। देश की सत्त्ता के लिए दल और दलों का समूह जिस एकता को बनाये रखने के लिए सजग रहते है की सत्त्ता को पाना निश्चय ही लाभदायी है। ऐसे नेताओं की भरमार है जो अज्ञानता वश सत्त्ता को पाने के लिए धार्मिक विचारधारओं /जातियता /भाषावाद /क्षेत्रवाद और न जाने कितने अलगाव को इंगित करने वाले विषयों में रमे है और अलगाव को सहारा बना कर राजनीति के नाम पर सरकारी धन का दोहन करते है और अभियान सहित भाषणों से जनता तक यही सन्देश पहुंचाने के तरह -तरह के हत्कंडे अपनाते है। प्रजातंत्र /लोकतंत्र के नाम जनता जो अलगावों के विषय से ग्रसित है , ऐसे का चयन कर पाती है जो और अलगाव बढ़ाये। मत के बल को सिमित स्वार्थ अलोप कर देती है।
टिप्पणियाँ
जय भारत जय विश्व
नित्यं पूर्णमनाद्यनन्तं ब्रह्म परम् ।
तदेवैकमेवाद्वैतं सत्।।