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जय भारत जय विश्व

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ॐ परमात्मने नमः  जय भारत जय विश्व   जन जागो जन-जन जागो   सनातन का अर्थ है जो था, है और रहेगा धर्म (मानसिक सच्चाचरित्र) एक है। इस स्वधर्म को हर मनुष्य समझता है। चाहे वह हिंदू, ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध, जैन, यहूदी, पारसी या किसी भी संप्रदाय का हो, शर्त बस इतनी है कि वह मनुष्य है। हालांकि यह भी अज्ञानता है क्योंकि यहां के लोग सिर्फ इस भ्रम से भरे हुए हैं कि मृत्यु अवश्यंभावी है, फिर सोचिए कि " न तन न मन, बस एक परमानन्द " यह बात पढ़ते समय असहज तो करती है, लेकिन क्या कोई मनुष्य कभी उस ईश्वर का ज्ञान शब्दों में बता पाएगा?  जो कण-कण में सब कुछ है। अन्य सभी धार्मिक विचारधाराएं जो दुनिया में लोगों को पता हैं जैसे मैं हिंदू हूं, मैं ईसाई हूं, मैं मुसलमान हूं, मैं यहूदी हूं, मैं बौद्ध हूं, मैं जैन हूं, मैं पारसी हूं आदि आदि सभी धार्मिक संप्रदाय हैं जो लोगों को एक ईश्वर की ओर ले जाते हैं, जिसे मानव समाज अपने मानसिक स्तर पर चुनता है। यह महज संयोग है कि हर कोई किसी न किसी परिवार में जन्म लेता है और उस घर के रीति-रिवाजों को देखता है और स्वतः ही उसका मन उसी चक्र में फंस जाता है और कभ...

कैवल्य दर्शनम

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  जय भारत जय विश्व   वर्तमान में द्वापर युग का 325 वाँ वर्ष चल रहा है।                                     दो शब्द सभी देशों के और सभी युगों के सद्‌गुरु अपने ईश्वरानुसंधान में सफल हुए है। निर्विकल्प समाधि की अवस्था में पहुंचकर इन सन्तों ने समस्त नाम-रूपों के पीछे विद्यमान अंतिम सत्य को अनुभव किया। उनके ज्ञान और आध्यात्मिक उपदेशों के संकलन संसार के धर्मशास्त्र बन गए। शब्दों के बहुवर्णी बाह्य आवरणों के कारण ये एक दूसरे से भिन्न प्रतीत होते हैं, परन्तु सभी परमतत्व के अभिन्न मूलभूत सत्यों को ही शब्दों में प्रकट करते हैं - कहीं खुले ओर स्पष्ट रूप से तो कहीं गूढ़ या प्रतीकात्मक रूप से। मेरे गुरुदेव, श्रीरामपुर निवासी ज्ञानावतार स्वामी श्रीयुक्तेश्वर (१८५५-१९३६), सनातन धर्म के और ईसाई धर्म के शास्त्रों में निहित एकता को समझने के लिए विशेष रूप से सर्वतोपरि योग्य थे। अपने मन के स्वच्छ टेबल पर इन शास्त्रों के पवित्र वचनों को रखकर अंतर्ज्ञानमूलक तर्क बुद्धि की छूरी से वे उनकी चीर-फाड़ कर सकते थे...

हम सब अमर है।

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  Om Paramatmane Namah  There is eternal life in human life.  Jai Bharat Jai Vishwa ♥️ 🙏 God is one and has many names and forms. Human society is one but due to multiplicity of people like Hindu, Christian, Islam, Sikh, Buddhist, Jain, Jew, Parsi etc., people find in their minds only that which they think like I am a Hindu, I am a Christian, I am a Muslim, I am a Buddhist, I am a Sikh, I am a Jew, I am a Parsi etc. etc. These are those whose understanding is very limited due to innumerable thoughts because people's understanding has not yet developed even this much that "God is one" and some Ram, Krishna, Jesus, Allah, Nanak and all those forms of God who took birth in human form and due to the association of inner mind, found this self of realization and made the human society aware of that one who is all and is in all. But the crowd of people who are floating their own thoughts and because of the thoughts of separation are continuously creating confusion in the people...