परमहंस योग+आनन्द
जीवन में भी योगी और मृत्यु में भी श्री श्री परमहंस योगानन्दजी ने लॉस एंजेलिस, कैलिफोर्निया (अमेरिका)में 7मार्च, 1952 को भारतीय राजदूत श्री विनय रंजन सेन के सम्मान के निमित आयोजित भोज के अवसर पर अपना भाषण समाप्त करने के उपरान्त ‘महासमाधि’(एक योगी का शरीर से अभिज्ञ अंतिम प्रस्थान)में प्रवेश किया। विश्व के महान् गुरु ने योग के मूल्य (ईश्वर –प्राप्ति के लिये वैज्ञानिक प्रविधियों) को जीवन में ही नहीं अपितु मृत्यु में भी प्रदर्शित किया। उनके देहावसान के कई सप्ताह बाद भी उनका अपरिवर्तित मुख अक्षयता की दिव्य क्रांति से देदीप्यमान था। फॉरेस्ट लॉन मेमोरियल —पार्क, लॉस एंजेलिस (जहां महान् गुरु का पार्थिव शरीर अस्थायी रूप में रखा गया है) के निर्देशक श्री हैरी टी. रोंवे ने सेल्फ रिलाइजेशन फेलोशिप को एक प्रमाणित पत्र भेजा था,जिसके कुछ अंश निम्नलिखित है: " परमहंस योगानन्द के पार्थिव शरीर में किसी भी प्रकार के विकार का लक्षण न दिखायी पड़ना हमारे लिए एक अत्यन्त असाधारण और अपूर्व अनुभव है। ... उनकी मृत्यु के बीस दिन बाद भी उनके शरीर में किसी प्रकार की विक्रिया नहीं दिखायी पड़ी।...