मानव जीवन में अमर जीवन है।





जातियता से जुड़े रहना या भूल जाना प्रत्येक इंसान की अपनी इच्छा है। 
विचार तो करना ही पड़ेगा की यह समाज के लिए हितकारी है या नहीं। 
 मनुष्य बुद्धिमान है।   
इच्छा काया,इच्छा  माया ,इच्छा जग(दोस्त ) उपजाया। 
कह कबीर ये चित विवर्चित ताका पार न पाया। 

♥️जन जागो जन – जन जागो💗
हृदयस्थ साथियों, प्रत्येक का स्वागत है । 
भारत
 वह  है स्थान है जिसे शब्दों के द्वारा व्यक्त करना संभव नहीं है, जो जीवन और समय के मध्य आत्मा/परमात्मा के उस भाग को प्रत्येक जिज्ञासु, साधक,योगी जो मनुष्य के उस प्रतिबिंब को दिखाता है, उन जन को जो वास्तविक रूप में महान मानव जीवन को समय और समझ (वैचारिक लहरें) जो मन का पोषण करती है –प्रतिक्रिया/क्रिया के द्वारा अपितु प्रत्येक ही मनुष्य मात्र वैचारिक तरंगों का अधिकतम – न्यूनतम और वैचारिक तरंगों का वैचारिक बातों का भराव पाता है, मन में। 
फिर भी प्रत्येक जन्म–मृत्यु के मध्य मानव जीवन का रसपान करने लगता है,उसकी समझ का स्तर सकारात्मक दशा एवं दिशा की ओर होने लगता है और शेष समाज मात्र स्वप्न सा प्रतीत होने लगता है। 

अतीत में अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपना एक सूत्र दिया – E=mc*2
यह सूत्र निसंदेह ऊर्जा के स्वरूप को समायोजित करता है। 
M जो द्रव्यमान को निरूपित करता है,यदि किसी कण का भार अनंत हो जाए और उस कण की गति (c)प्रकाश वेग से दोगुनी हो जाए तो स्वत 
प्राप्त होने वाली उर्जा (जीवन ऊर्जा) का बोध प्रत्येक ही पाता है फिर भी यह बात मात्र। शाब्दिक नही है। अपितु ...........
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मानव जीवन में अमर जीवन है। 


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