जन जागो
जय भारत जय विश्व
जन की बात ,जनता के साथ
महात्मा ( महान आत्मा ) शब्द द्वारा ऐसे व्यक्तित्व के प्रति सम्बोधन है , जिसने धर्म की आधारशिला जो मात्र अहिंसा है , का अनुसरणकर्ता बनकर भारतीय समाज को एकता के सूत्र में बांध /संगठित कर भारत देश को स्वतन्त्रता से शुशोभित करते हुए , विश्व जन मानस को भी 'अहिंसा परम धर्म ' का पाठ पढ़ाने वाले महापुरुष को सम्पूर्ण विश्व ' महात्मा गाँधी '(मोहनदास करम चंद गाँधी) के नाम से पुकारते है।
महात्मा गांधी जी की जीवनचर्या और विचार स्वतः राजनितिक संत के रूप में विश्व समाज को प्रेरित करते है। गांधी जी द्वारा अहिंसा की व्याख्या " विचार या कृति से किसी जीव को किसी प्रकार की हानि न पहुँचाना। ऐसे सुन्दर आदर्श धारण एवं कृत्यों द्वारा प्रकट करने वाला जीवन सदैव ही जन -जन की लिए प्रेरणादायी ही है। महात्मा गांधी की अहिंसा की पुकार मनुष्य की अंतरात्मा को छूती है। गांधी जी कहते है ' रक्तपात के द्वारा अपने देश को स्वंतंत्र कराने का प्रयास करने की अपेक्षा आवश्यक हुआ तो मै सदियों तक स्वंतंत्रता की प्रतिक्षा करुँगा।
ऐसे दृढ़ी अहिंसावादी द्वारा ही भारत की प्रखरता को और प्रकाशित कर विश्व को प्रेरित कर रहा है। महात्मा गांधी जी के उच्च सेवाभाव उनके द्वारा लिखे गए " यदि मुझे फिर से जन्म लेना पड़े तो मैं अछूतो के बीच अछूत बन कर ही जन्म लेना चाहुँगा , क्योंकि उसके द्वारा मै और अधिक प्रभावशाली ढंग से उनकी सेवा कर सकूंगा।
यदपि मानव में सदैव 2 प्रकार की प्रवृत्ति रहती है। 1 अहिंसात्मक 2 हिंसात्मक
भारत आदिकाल से ही आध्यत्मिक देश है और आध्यत्म पथ का पथिक इस बात को अनुभव और सूक्षम विचारों द्वारा यह भान पाता ही है कि अहिंसा के तपते पथ पर चलकर ही वह आध्यत्मिक उन्नति को आतंरिक शान्ति के रूप में पा सकता है।
महात्मा गांधी जी का जीवन चरित्र भी अहिंसा को स्पष्ट रूप से विश्व के समक्ष उपलब्ध है। इस बात को भी दृष्टिगत करता है। संसार ने सर्वप्रथम यह भी देखा की किस प्रकार किसी भी देश की सामाजिक कुरीतियों एवं विषमताओं को अहिंसा के बल से सुव्यवस्थित , भेदभाव मुक्त स्वच्छ और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भाईचारा , एकता से सामान्य जनों को संगठित कर देश/जन -जन के हित के वास्ते संगठात्मक बल का निर्माण कर , महात्मा गांधी जी ने भारतीय जनों
एवं विश्व के सभी राष्ट्रों को प्रत्यक्ष यह सिद्ध कर दिया की अहिंसा ही वह मार्ग है जो एक के लिए ही नही अपितु प्रत्येक जन और राष्ट्र के लिए सर्वोन्नति के मार्ग को बनाता है। महात्मा गांधी जी का जीवन उन्ही जनों को प्रेरित करता है , जिनकी आतंरिक प्रवित्ति अहिंसात्मक है। यह भी कटु सत्य है कि हिंसात्मक प्रवित्ति का पोषण करने वाले दुर्बल जनों के लिए गांधी जी के विचार एवं कार्य सदैव फास (शूल )की भांति ही प्राप्त करते रहेंगे।
यदपि मानव में सदैव 2 प्रकार की प्रवृत्ति रहती है। 1 अहिंसात्मक 2 हिंसात्मक
भारत आदिकाल से ही आध्यत्मिक देश है और आध्यत्म पथ का पथिक इस बात को अनुभव और सूक्षम विचारों द्वारा यह भान पाता ही है कि अहिंसा के तपते पथ पर चलकर ही वह आध्यत्मिक उन्नति को आतंरिक शान्ति के रूप में पा सकता है।
महात्मा गांधी जी का जीवन चरित्र भी अहिंसा को स्पष्ट रूप से विश्व के समक्ष उपलब्ध है। इस बात को भी दृष्टिगत करता है। संसार ने सर्वप्रथम यह भी देखा की किस प्रकार किसी भी देश की सामाजिक कुरीतियों एवं विषमताओं को अहिंसा के बल से सुव्यवस्थित , भेदभाव मुक्त स्वच्छ और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भाईचारा , एकता से सामान्य जनों को संगठित कर देश/जन -जन के हित के वास्ते संगठात्मक बल का निर्माण कर , महात्मा गांधी जी ने भारतीय जनों
एवं विश्व के सभी राष्ट्रों को प्रत्यक्ष यह सिद्ध कर दिया की अहिंसा ही वह मार्ग है जो एक के लिए ही नही अपितु प्रत्येक जन और राष्ट्र के लिए सर्वोन्नति के मार्ग को बनाता है। महात्मा गांधी जी का जीवन उन्ही जनों को प्रेरित करता है , जिनकी आतंरिक प्रवित्ति अहिंसात्मक है। यह भी कटु सत्य है कि हिंसात्मक प्रवित्ति का पोषण करने वाले दुर्बल जनों के लिए गांधी जी के विचार एवं कार्य सदैव फास (शूल )की भांति ही प्राप्त करते रहेंगे।
भारत के राजनितिक संत गांधी अपने सिद्धांत को इन शब्दों में प्रकट करते है " मैंने देखा कि विध्वंस और विनाश के बीच जीवन चलता रहता है। इसलिए विनाश से बड़ा कोई नियम अवश्य है। केवल उसी नियम के अंतर्गत किसी सुव्यवस्थित समाज का अस्तित्व संभव हो सकता है और जीवन जीने योग्य बन सकता है। अहिंसा की मानसिक अवस्था प्राप्त करने के लिए काफी कष्टप्रद साधना की आवश्यकता होती है। उसके लिए सैनिक के जीवन की भांति कठोर अनुशासन बद्ध जीवन की आवश्यकता होती है। इसकी पूर्णावस्था तभी आती है , जब मन , शरीर एवं वाणी में पूर्ण समन्वय स्थापित हो जाये। यदि हम सत्य और अहिंसा के नियम को अपने जीवन का नियम बनाने की ठान लें तो , प्रत्येक समस्या अपना समाधान स्वयं प्रस्तुत कर देगी "
जन - जन की आवाज
जनता की आवाज़
धर्म (मानसिक सच्चरित्रता ) एक है और
धार्मिक विचारधारा(हिन्दु ,इस्लाम ,सिख,ईसाई,पारसी,बौद्ध,जैन आदि ) का राजनीति में संयोग कर नेता जन और राजनितिक दल, स्वार्थपूर्ति, अंध धार्मिकता के वशीभूत हो , सत्ता प्राप्ति की आस कर , समाज के हितैषी बन ,देश के विकास के लिए प्रयासरत है। निकट बीते दशकों में भारतीय राजनितिक दलों ने और नेताओं ने जिस प्रकार धार्मिक विचारधारा से आवेशित हो और बृहद धार्मिक विचारधारा के अनुयायियों को उग्र और उत्तेजित कर सत्ता को प्राप्त कर लिया है।
भारतीय समाज में वयप्त विभिन्न धार्मिक विचारधारा के अनुयायियों के मध्य विभाजन को और गहन करने का प्रयास किया। अपितु धीरे -धीरे विभाजित करने के विचारों से मुक्त हो रहे है और " सबका साथ सबका विकास " की बात कर रहे है।
सामान्य जन और बुद्धिजीवी जन भी इस बात से सहमत होंगे ही की भारत देश परातंत्र काल में पूरा भारत एक जुटता के साथ एकत्र हो। ऐसे तीव्र जन बल से आंदोलन करता की , कुछ समय में आगंतुकों (अंग्रेजो ) को समझ आ गई की भारत के जन -जन की एकता शक्ति के सामने टिक सकना संभव नही है।
क्या ऐसे एकता बल को , भारत देश में उपस्थित सभी धार्मिक विचारधाराओं के अनुयायियों को तोड़ कर पाना संभव था। निसंदेह नहीं। फिर वर्तमान में धार्मिक विचारधाराओं के अनुयायियों के मध्य किन्ही भी कारणों के लिए कटुता को बढ़ाना देश का हित करेगा या अनहित।
वैसे ही भारतीय समाज असंख्य जातियों के बंधन (विभाजन ) से मुक्त होने के लिए प्रयासरत है। भारत देश का जन -जन मानव धर्म और एक मानव जाति को स्वीकार करने का आकांक्षी है।
भारत की सम्बृद्धि की चाभी जन -जन है।
सत्य सरल है।
सामान्य जन , नेता जन , धनपति जन या जन -जन, जब -तक इस सरल विचार का ' अपना कौन - अपना क्या ' का बोध नही करेगा। तब -तक स्वप्न संसार को सत्य ही मानेगा और स्वयं के अमर जीवन को मिथ्या पायेगा।
क्रियायोग - विज्ञान
योगदा सत्संग सोसाइटी
क्रियायोग अनुसन्धान केंद्र
जय भारत जय विश्व
सामान्य जन ,सामान्य बुद्धि से विचार करता है तो विचार -मंथन से यही निष्कर्ष को ही प्राप्त करेगा कि विकास क्रम समाज हित में होने का अभिप्राय है कि बुनियादी दैनिक सामान और सेवाओ का मूल्य दिन प्रति दिन कम होते जाना ही चाहिए।
जन -जन के लिए और फिर उपलब्धता भी प्रचुर मात्रा में गुणवत्ता के साथ हो।
वर्तमान में भारत देश का जन -जन के समक्ष यही बखान करने के लिए कि " विकास हो रहा है " को दर्शाने हेतु जनता के धन का प्रयोग कर नेता जन अपनी और अपने राजनितिक दलों को जनता हितैषी दिखाने का और लोकप्रियता पाने को लालयित है। साधारण बात को समझ नहीं पा रहे है की विकास स्व चलित प्रक्रिया है जैसे 'परिवर्तन 'भौतिक संसार का नियम है।
सत्य सरल है।
जन -जन उतना ही सामर्थ्यवान है जितना " ईश्वर "
क्रियायोग - विज्ञान
हिरदयस्थ मित्रों ,
जन जागो
जनता के धन का प्रयोग /दुरउपयोग का होना उन जनो के द्वारा जो , जिनके रख -रखाव में , आवागमन में ,सुरक्षा में , स्व इच्छित आयोजन मंचन हेतु होने वाले सरकारी धन का प्रयोग किस सीमा तक होना चाहिए। जनता से प्राप्त धन की मात्रा के प्रचुरता से उपलब्धता के कारण भी शासन -प्रशासन अपने अनुसार आय -व्यय का निर्धारण कर पश्चात ऐसी नीतियों का निर्माण की 'विकास हो रहा है ' का भान जन -जन को होता रहे ,नहीं तो प्रशासन तो सुरक्षित है लेकिन चुनाव (जनता उत्सव ) में जनता शासन दल का परिवर्तन न कर डाले।
मित्रों , जब तक जन -जन बुद्धि समझ को इतना प्रबल नही कर लेता की हिन्दु ,मुसलमान , सिख ,ईसाई ,पारसी,जैनी आदि सब जन , जन - जन इंसान है।
एक मानव समाज में विभिन्न धार्मिक विचारधारायों जो हिन्दु ,इस्लाम,क्रिश्चन,सिख,बौद्ध ,जैन, यहूदी, आदि नामो से प्रचलित है। वह धार्मिक पथ है। जो अपने अनुयायी को स्पष्ट रूप से वयक्त करता है की धर्म एक है। ईश्वर एक है।
मानव समाज में विभिन्न जातियों का होना अभी तक मात्र वैचारिक स्तर पर विभिन्नता को प्रकट कर रहा है यद्वपि प्रत्येक मन यह मानता है सब एक है, और मन ही निर्धारित करता है की समाज की समझ की अज्ञानता को प्रकट करता है और इस विघटन का सृजन और बनाए रख , ग्रहण करे रहना जन -जन की स्व इच्छा पर निर्भर है। अपितु सब की इच्छा है
" सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय "
रूप अनेक स्वरुप एक
हिरदयस्थ मित्रों
भारत के नव राजनीति का प्रारम्भ और विश्व को अहिंसा परमो धर्म को सजीव कर देश को एक सूत्र में बांधने का कार्य जिसके दम पर भारत देश ने स्वतंत्रता को प्राप्त किया।
मित्रों , जन और जन के लिए चाहे आप किसी भी धार्मिक विचारधारा के अनुयायी हो और समाज के किसी भी वर्ग/जाति के हो।
मित्रों , जन और जन के लिए चाहे आप किसी भी धार्मिक विचारधारा के अनुयायी हो और समाज के किसी भी वर्ग/जाति के हो।
नैतिक /अनैतिक भाषाणों द्वारा सत्ता प्राप्त करना आसान है क्योंकि निकट अतीत में अन्य पार्टियों ने जो भ्रम विकास के नाम पर सभी प्रचार माध्यमों से फैला कर सत्ता को प्राप्त किया। जन-जन / जनता को जिस विकास का सपना दिखाया जा रहा है। वस्तुतः वह सामाजिक विघटन है जिससे विकास नही विनाश ही प्राप्त होगा।
जनता को प्रचार और भीड़ द्वारा मात्र कुछ समय के लिए भर्मित किया जा सकता है। सदैव नही।
महात्मा गाँधी ने ही बताया और सिखाया कि धर्म एक है। अहिंसा परम धर्म।
जनता को प्रचार और भीड़ द्वारा मात्र कुछ समय के लिए भर्मित किया जा सकता है। सदैव नही।
महात्मा गाँधी ने ही बताया और सिखाया कि धर्म एक है। अहिंसा परम धर्म।
बाकी सब धार्मिक विचारधाराएँ है,जो विश्व समाज में हिन्दु ,इस्लाम ,सिख ,ईसाई ,यहूदी ,बौद्ध ,जैन आदि अन्य असंख्य नामों से मानव समाज रूपी सागर में धार्मिक नदियाँ है। सभी धार्मिक विचारधारा का सार एक है। ईश्वर एक है। जन-जन जागो और विचार करे की लोकतंत्र से और क्या लाभ?
बनत -बनत बनजाए
राजनीति और अध्यात्म
धर्मनीति
धर्मनीति है मानव का कल्याण कर सकती है। यदपि विश्व समाज धीरे -धीरे ही यह बात समझ में ला रहा है कि "धर्म एक है "और धार्मिक विचारधाराए अनेक है। धर्म का अर्थ है " मानसिक सचचरित्ता " और धार्मिक विचारधाराएं है -हिन्दु ,इस्लाम ,सिख ,ईसाई ,यहूदी ,बौद्ध ,जैन आदि -आदि
राजनीति और अध्यात्म का सामंजस्य ही भारत के उत्थान को पुनः प्रकट कर रहा है। राजनीति का आशय है
"नीति एवं शासन से प्रशासन द्वारा जन -जन को सर्वजन हिताय सर्वेजन सुखाय का अनुभव करना "
वर्तमान राजनीतिज्ञो का सत्ता की प्राप्ति तक केंद्रित है और इसका कारण भी है की अज्ञानता के कारण सीमितता का होना। सीमितता तो सीमितता है चाहे किसी भी धार्मिक विचारधारा तक हो या विशेष वर्ग /क्षेत्र तक या फिर जनता की बात करे।
ऐसा कोई जन कभी न तो समाज का न ही विश्व को संगठित कर सकता है। जैसा भारत के राजनीतिक संत "महात्मा गांधी "जी ने धर्म का आधार "अहिंसा परम धर्म " पर चलकर और अध्यात्म के राजयोग पथ क्रियायोग विज्ञान का अभ्यास कर एकता बल से भारतीये समाज ,देश और विश्व को सुव्यवस्थित कर पाना संभव है।
"लोकप्रियता " स्व्पन संसार का तिलिस्म है।
सत्य सरल है। देता वही है , जिसे प्राप्त हो।
श्रद्दे
अध्यात्म योगी श्री सत गुरु योगी श्री सत्यम जी के श्री चरणो में कोटि -कोटि नमन
जय भारत जय विश्व
नव प्राचीन भारत की आजादी का आंदोलन के दौरान भारतीय राजनीति दल का गठन हुआ।
जिसके मार्ग का प्रकाश सदैव ही जन -जन और विश्व के सारे देशों को निश्चय ही प्रकाशवान ही बनाता है।
" अहिंसा परम धर्म "
को धारण करने वाले शांति प्रचारक , महात्मा गांधी के असाधारण व्यक्तिव छवि और विचारों की तरंग प्रेरणा रूप में सदैव हमें / विश्व जनों को प्रेरित ही करेगी। महात्मा गांधी जी के जीवन की ढाल श्री गीता का उद्घोष अहिंसा परम धर्मः , जिसमे साधरत हो। भारतीय जनों को संगठित कर ऐसे जन आंदोलन का का सूत्रपात किया। जिससे विभिन्न भागों में बंटा भारतीय समाज का जन -जन भारतीय एकता के रूप में प्रकट भारतीय शक्ति की व्यपकता का असर इतना तीव्र था कि शासकों को समझ आ गयी कि भारत जन की एकता शक्ति अतुलनीय है।
है जग में सूरमा वही जो रहा अपनी बनाता है
कोई चलता है पदचिन्हो पर कोई पदचिन्ह बनाता है
जय श्री कृष्ण ,अल्लाह हो अकबर ,वाहे गुरु जी की फ़तेह ,ईश्वर एक है।
गुजरात , भारत देश का वह प्रान्त जो ऐसे राजनितिक संत की जन्मस्थली है जिनका गुणगान भारतीय जन -जन ही नही अपितु विश्व जनों आदरणीय आदर्श वयक्तित्व के रूप चिन्हित है।
" अहिंसा परम धर्म "
का सूत्र स्वतः ही " महात्मा गाँधी " जी का नाम प्रकाशित करता है। वर्तमान गुजरात की नही भारत के प्रत्येक भाग के नागरिकों की यही अभिलाषा है की भारत देश को विकसित राष्ट्र के श्रेणी में बनाए रखना अपितु सहज संभव है।
विचारशीलता ,मानव मस्तिक का वह तीव्रतम प्रयास बल है जिससे ही जन -जन और सम्पूर्ण समाज विकास कर रहा है।
भारत के सभी प्रान्तो को समृद्धिवान और निवासियों को समृद्धशाली बनने की अनिवर्यता इसलिए अधिक है की सब चाहते है विकास।
विकास का अभिप्राय क्या है ?
विकास से विजय
हिरदयस्थ मित्रों
जन - जन/ जनता इतना समझ रखती ही है कि राजनीति का अर्थ है " नीति एवं शासन से प्रशासन द्वारा ' सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय ' जन -जन को अनुभव कराना "
मित्रों , निकट अतीत में और वर्तमान में भारतीय राजनीति का इस प्रकार पतन हुआ कि किसी एक प्रदेश में ही नही बल्कि पूरे भारतवर्ष में भ्रष्टाचार रूपी दानव ने घुसपैठ कर भारतीय अखंड समाज को खंड -खंड करते जा रहा है।
मित्रों , विचार तो करना ही पड़ेगा की जब
प्रत्येक भारतीय के दिल में भारत बसता है और जन -जन देशभक्त है तो भ्रष्टाचार कहाँ पनप रहा है? और फल -फूल रहा है?
जन -जन जागे
निश्चय ही भ्रष्टाचार का सूत्रपात अज्ञानता ,स्वार्थता,सीमितता ,अति धन अर्जन की इच्छा , सत्ता -सुख ,मान -प्रतिष्ठा की लालसा के वशीभूत होना ही भ्रष्टाचार का जन्मना है। फिर भी समाज हितैषी सेना ,शासनिक ,प्रशासनिक ,व्यपारिक और जन -जन देशभक्त दिखने का प्रयासी बना है तो भ्रष्टाचार कहाँ पनप रहा है और फल - फूल रहा है।
वर्तमान समय भारतीय
मित्रों ( न नर न नारी एक त्रिपुरारी) और उन प्रदेशों के जनों के वास्ते गंभीर है की जन -जन , सकुटुम्ब ,ससमाज विचार करे ही की क्या धार्मिक विचारधाराएं ( हिन्दु ,इस्लाम,सिख,ईसाई ,पारसी ,बौद्ध ,जैन आदि )को 'धर्म ' की संज्ञा दिए हुए। समाज को खंडित ही करे रहेंगे कि यह भी मनन प्रयास करेंगे की वास्तव में धर्म का अर्थ है
" मानसिक सच्चरितता "
धर्म जोड़ता है यह ज्ञान सभी धार्मिक विचारधाराओं द्वारा और पवित्र धार्मिक पुस्तकों से अनुयायी जानता है। की धर्म एक है जैसे ईश्वर एक है।
दूसरी सबसे बड़ी बाधा है विकासपथ की एक मानव समाज में असंख्य जातियों /वर्गों का प्रचलन जिसका सीधा और बड़ा लाभ वह लोग पाते है जो एक समाज को तोड़ने के लिए और सिमित क्षेत्र /वर्ग के हितकारी बनकर उग्र अनैतिक विचार वाणी द्वारा स्वयं को नेता बता रहे है। यह बात सामान्य जन भी समझ सकता है की जब तक आतंरिक सामाजिक वैचारिक विघटन के स्थान पर जन -जन को एकता बल के साथ और समहित भाव से समाज को जोड़ते रहे तो निश्चय ही विकास से विजय प्राप्त होना ही है। जन -जन के लिए , जन -जन के द्वारा।
अह्वान विचार
चल पड़े दो पग जिधर
चले कोटि -कोटि पग उधर
भारतीय आज़ादी आंदोलन के बृहद इतिहास से यह स्पष्टता के साथ प्रकट है की भारत में ही नही अपितु विश्व समुदाय ने भी प्रथम दृढ़तम अहिंसात्मकता के सूत्र (अहिंसा परम धर्म ) से सिंचित आंदोलनकारी ' महात्मा गांधी ' जी का मार्ग ही और श्री गीता सार है। " अहिंसा परमो धर्मः "
चुनाव समय पुनः मत दाता को सबल करने वाला है
सत्य सरल है। चाहे भारत देश का कोई भी भाग / प्रदेश हो सभी नागरिकों की चाहत है की मूलभूत दैनिक सामाजिक जरूरतों और समस्यों का निदान ऐसा हो की टिकाऊ हो। संभव है।
विकास से विजय का अभिप्राय यही दृष्टिगत करता है।
आरक्षण
एक मीठा जहर समाज को समाजों द्वारा राजनीति से सत्ता के लिए। असहमति /सहमति का मनन तर्क -वितर्क के व्यवहारिक जाल से मुक्त करता जाता है आरक्षण से। सामाजिक वातावरण की निर्मलता ही विकास का विकास है। वर्तमान व्यवस्थाओं में परिवर्तन जन -जन के समहित और सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का लागु होना ही , एक समाज में तीव्र परिवर्तन लहर है। आरक्षण का आधार और चयन की प्रक्रिया ऐसी होना अनिवार्य है जिससे समाज और विकसित हो सके ना कि सिमित क्षेत्र /वर्ग ही लभित हो। आरक्षणथी को सरल -सबल बना किसी भी हुनर ढंग द्वारा सुसंचालित करने का अर्थ है , समाज से आरक्षण प्रथा का मूल समाधान।
कितना आश्चर्य है की कैसे लोग जातियात के सहारे राजनीतिज्ञ बन जा रहे है और देश सेवा के लिए लालायित है। ऐसे स्वार्थी जन ही है जो देश को ,समाज को ,प्रदेश को इस प्रकार से तोड़ते रहने के लिए प्रयासरत है की विकास कर पाए लेकिन किसके विकास को कर पाएंगे ऐसे स्वार्थी जन।
भारत ही नही सम्पूर्ण विश्व में सामाजिक विभिन्नता है। लेकिन भारत ही वह देश है जो इतने विघटनों के बावजूद एकता के डोर से एक है।
क्या विकास सीमितता को रखने वाले कर पाएंगे कभी नही।
?
सवाल भारत जन का -
भारत के जन -जन से
इस ब्लॉग के माध्यम बनाकर मैं
भी चाहता हूँ , भारत देश के जन -जन का कल्याण हो। क्योंकि सत्य सरल है , जब तक भारत देश का जन -जन सम्बृद्धिशाली नही होगा तब तक देश के नेता जन कितना भी बखान करे विकास का , देश कभी भी वास्तविक उन्नति को नही पा सकता है। जिस देश का जन -जन ही सम्बृद्धिवान होगा, वह देश तो स्वतः ही विकसित हो जाता है।
15 लाख प्रति परिवार बड़ी योजना का प्रारम्भ करवाने हेतु मै कृतसंकल्पित हूँ।
क्या लोकतंत्र का लाभ उन्ही को प्राप्त होगा जो नेता बन, अनैतिक /नैतिक भाषण से जनता को भर्मित करें और दीवास्वपन और उन वादों को मात्र इसलिए करे की चुनाव में जनता का मत प्राप्त कर सरकार बना सत्ता -सुख को प्राप्त कर ले। मात्र राजनीति सत्ता प्राप्ति का साधन है। स्वयं के विकास के लिए, ऐसे नेता जन कभी कुछ भी विकास कर पाएंगे।
?
वास्तव में यह स्वप्न संसार है। स्वतः ही परिवर्तनों को करता हुआ विकास कर रहा है। और नेता जन विकास का राग आलपते हुए अपना विकास कर रहे है।
भारत में ऐसी अलख जो जन -जन को ही विकसित करे।
15 लाख प्रति परिवार बड़ी योजना
फायदा और नुकसान किसका है ?
विचार ही है जो सर्व संभव करता है।
विचार करें जन -जन
वास्तव में यह स्वप्न संसार है। स्वतः ही परिवर्तनों को करता हुआ विकास कर रहा है। और नेता जन विकास का राग आलपते हुए अपना विकास कर रहे है।
भारत में ऐसी अलख जो जन -जन को ही विकसित करे।
15 लाख प्रति परिवार बड़ी योजना
फायदा और नुकसान किसका है ?
विचार ही है जो सर्व संभव करता है।
विचार करें जन -जन
डिजिटल युग
भारत देश के विकास की बात हो तो क्या किया कांग्रेस ने ?
आज का भारत जिस डिजिटल दुनिया को और सुसज्जित करने के लिए उत्साहित है , क्या इस बात को विस्मृत कर रहा है या अनैतिक विचारों के द्वारा सत्ता के अभिलाषी अखंड भारत की जनता को विस्मृत कराने के लिए प्रयासरत है लेकिन इन सभी अज्ञानी जनों को यह बात समझ में लानी ही पड़ेगी की क्योंकि वास्तविकता को जन -जन /जनता जानती है की भारत देश के स्वर्णिम भविष्य की रूप रेखा और सम्बंधित आवयश्क कार्य को माननीयों ने उपलब्ध करा कर इस बात को निश्चित कर दिया है की समझ का आधार सत्ता की प्राप्ति तक सिमित नहीं है अपितु वह तो अतीत से भारत देश के जन -जन की आवाज़ है।
आज हम सभी जिस डिजिटलिज़शन की बात कर रहे है उसका आधार भारत देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी के उस भाव को सदैव वयक्त करता ही रहेगा।
न की मिया मिठू बनना।
" भारत देश में डिजिटल युग का प्रारम्भ " अखिल भारतीय कांग्रेस " सरकार के नीतियों एवं समाज हित का वह उदाहरण है जो चरितार्थ है।
क्रियायोग का प्रसार - भारत वर्ष का विस्तार
श्रद्धेय श्री आध्यतमिक योगी श्री सत्यम कोटि -कोटि नमन
जय भारत जय विश्व
पब्लिक सिस्टम
लोकतंत्र - का गठन और उद्देश्य ही है " सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय " के विचार ,भाव और प्रयास जन -जन का ,जन -जन द्वारा स्वतः जनतंत्र को प्रकट कर रहा है। लोकतंत्र संचालन वास्ते धन प्राप्त होता है
" टैक्स से " टैक्स वह निधि है , जन -जन जानता है कि जनता का धन है। जन -जन जागे।
जनता का पैसा
गांधी जी गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए थे। उनके खाने में शहद अवश्य शामिल होता था। मीरा बहन का काम होता था की वह गाँधी जी के लिए शहद की बोतल साथ ले जाएं। एक दिन लंदन में गांधी जी दोपहर का भोजन करने के लिए किसी यहां गए। पर मीरा बेन शहद की बोतल ले जाना भूल गई। बापू को तो खाने में शहद जरुरी था। यह सोचकर मीरा बेन फटाफट पैसे निकाले और किसी को भेजकर शहद की नई बोतल माँगा ली। खाने की मेज पर गांधी जी ने शहद की नई बोतल देखी। उसे देखकर वह तुरन्त बोले ,"यह तो नई बोतल है पुरानी खत्म हो गयी क्या?" मीरा बेन ने डरते -डरते बता दिया कि नई बोतल की जरुरत क्यों पड़ी। गांधी जी सुनकर गंभीर हो गए। वह बोले ,"एक दिन अगर मै शहद नही खाता तो भूखे थोड़े मर जाता। ध्यान रखो। "हम जनता के पैसे पर जीते है "जनता के पैसे की फिजूलखर्ची नही होनी चाहिए। गांधी जी ने बोतल वापस लौटा दी। और उस दिन बिना शहद के भोजन किया।
जय भारत जय विश्व
भारत देश की महिमा और महत्ता को विश्व समाज सदैव स्वीकारता है। भारत देश की महानता अदभुत है , जिसका वर्णन ,अवर्णनीय है। विश्व के सभी देश , जन जिस गति से नित्य -नवीन खोजों और अविष्कारों को सृजित कर रहा है और प्रयासरत है विश्व शांति के लिए।
जिससे जन -जन की क्षमता इतनी प्रगाढ़ हो सके की भौतिकता के सार को समझ सके।
मानव जीवन में , के अंत की धारणा का भान का होना या बनाये रखना की भूल को न तर्कों -वितर्कों न ही भौतिक सांसारिक समृद्धि की उपलब्धता न ही श्रवण -वाचन से समझ -समझाना सहज है। विज्ञान मानव को मूल की ओर ही ले जाता है। यही कारण है जन -जन विज्ञान का शोधार्थी है।
भारत देश का कार्य है , विश्व के सभी देशो ऐसे एकता बल का सृजन करना ही रहा है कालो से , जो मानव में है। मानव उन्नति का आधार है।
भारत के नेता जिस प्रकार भारतीय समाज में विघटन के जहर को और तीर्व कर रहे है सत्ता सुख और मान प्रतिष्ठा के वास्ते , निश्चय ही अपने अंत को नाश का निर्माण कर रहे है। जिस भी देश बुद्धिजीवी वर्ग अपने स्वार्थ और अज्ञानता के कारण एक समाज को विघटित करता है। क्या कभी भी वह देश को उन्नत कर सकता है , कभी नही।
सत्य सरल है।
उत्सवों का आयोजन का होना सामाजिक एकता को प्रकट करता है। और व्यापार की गति को बढ़ाता है। एकता के साथ आर्थिक लाभ सरकार को (टैक्स ) और व्यपारी समुदाय को , जन -को। संसार में धार्मिक विचारधारओं के वैचारिक और भाषित अनुमानों के आधार पर और आपसी उत्सव मनाये जाते है। धार्मिक विचारधाराये " धर्म " नहीं है अपितु मार्ग है जो मानव समाज में " मानसिक सचचरित्ता " ( धर्म ) स्थापित करने का जन -जन में माध्यम है , जो कोई भी हो मानव हो।
सरकारी पैसे का व्यर्थ करना और यह समझ और दर्शाने का प्रयास की विकास हो रहा है। क्या नीतिगत है।
मित्रों , भारत का जन -जन ही राजनीतिज्ञ है।
विचार करे।
आपका साथ ही भारत के जन -जन का विकास है।
ॐ प्रकाश निवासी
21/15 A नया बैरहना प्रयागराज - 211003
(अल्लाहाबाद /ALLAHABAD) उत्तर प्रदेश, भारत
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