जीवन और संसार
मूल्य या अमूल्य मानव जीवन जिसमे सर्वस्व है, जब भेद -विभेद ना हो विचारों में और एक ही विचार हो सुनहरे स्वपन संसार में।
सब में एक , एक में सब
जय भारत जय विश्व
संसार बुद्धिजीवी है और मानव जानता है कि मानव जीवन एक स्वपन है।
विचारों की अनन्त तरंगो को विस्तृत या संकुचित करना मानव मन/बुद्धि का कार्य है।
मानव को यह बात का ज्ञान है की भौतिक पदार्थ का अस्तित्व नही है। भौतिक विज्ञान का सार सर्वविदित है कि भौतिक पदार्थ, ऊर्जा का घनिभूत रूप है। फिर चाहे वह शरीर हो या सूर्य।यह भी अटल है की जीवन अमर है। जिस अभिव्यक्ति को संसार जन ईश्वर ,कृष्ण ,जीसस ,अल्लाह ,गुरु नानक ,भगवान बुध ,महावीर,राम ,मालिक ,लाहिड़ी महाशय ,ब्रहम ,क्राइस्ट या ब्रह्मांडीय ऊर्जा या जिस नाम ,रूप का ध्यान करते है या से प्रार्थना करते है यदि विचार तरंगो में शिथिलता आती है। तो शान्ति और स्थिर्ता स्वतः अनुभव में प्राप्त होती है। ईश्वर को शब्दों द्वारा व्यक्त करना ,तर्क -वितर्क करना निरर्थक है।
संसार का प्रत्येक प्राणी स्वतंत्र है।
मानव समाज ऐसे जकड़ा हुआ जैसे मकड़ी अपने ही जाल से।
प्रत्येक अधिकतम और अधिकतम की चाहा रख कर प्रयास करता है।
मनुष्य को छोड़कर किसी में इतना समझ और सामर्थ्य नही है कि पा सके सबकुछ (ईश्वर)।
मानव एक है। यह जरुरी है कि मत को स्वीकार करे ह्रदय से तो उसी मतभाव में रहेगें। ईश्वर ही एक है।
जानवरों की प्रजाति अलग है पर इन्सान तो एक ही है।
धर्म , जातियता , देश और किसी भी व्यक्तिगत विचारों से एक मानव समाज को विभक्त करना और अपने क्रियाकलाप और पारम्परिक विचारों को बनाए रखने के लिए एक मानव समाज को बाँटना बंद करना के प्रयास ही मानव का उन्नति का द्वार है ,समाज पथ है।
जंहा से और जिसके द्वारा मानव समाज को दिशा प्राप्त होती है। सांसारिक कार्यो को करते हुए संगठित हो और देश को सम्बृद्ध करने बजाय देश के नागरिकों को सम्बृद्धशाली बनाने का विचार और प्रयास करे। स्वतः ही देश सम्बृद्धशाली होगा।
सामाजिक रीतियों - कुरीतियों का दमन विचारों से करने पर ही स्वस्थ मानव समाज का बनना संभव है। जिस समाज में विचार शुद्ध होगा। वहाँ पर धार्मिक या अन्य कारणों से विघटन पनप नही सकता।
एक या सभी धार्मिक विचारधाराओं को मन /बुद्धि के द्वारा विचार कर, सोचकर ,सुनकर ,अध्यन कर या धर्म का अनुसरण करेगा तो वह सहर्ष स्वीकार कर लेगा की " ईश्वर एक है " सब एक है।
प्रत्येक धार्मिक विचारधारओं में क्रियाकलाप (अनुष्ठान ) और नियम है। फिर भी सारी नदियां को अंनत सागर में मिल कर एक होना होता है। वैसे ही सभी धर्मो से प्राप्त धर्म एक है। जैसे मानव एक है। ईश्वर एक है। जीवन एक है।
धर्म = मानसिक सतचरितता
सबसे महत्व पूर्ण है यह अनुभव करना की विचार शरीर तक ही सीमित है कि शरीर का अंत ही जीवन की अंत है। यही सबसे बड़ा वहम है की मर जायेगा।
आज भी भारत में वही अमरता का अनुभव कराने वाला क्रियायोग -विज्ञान युगों से संसार को प्रदान कर रहा है और सांसारिक जन को सर्वस्व की अनुभूति प्रदान कर रहा है।
आश्चर्य उन सब को होगा कि क्या यह सम्भव है लेकिन मानव के लिए संभव है। जो प्रयास और इच्छा करे अनुभव में लाने को नियत क्रियायोग अभ्यास का। जिसका सिद्धान्त ही एक है।
एको ब्रहम द्वितीयो नाश:
मानव का विज्ञान के प्रति आकर्षण का कारण है कि विज्ञान के द्वारा विचार को परिक्षण (प्रैक्टिकल ) कर उस तथ्य को पाता है जिससे तृप्ति हो तथा किसी को परिक्षण करवाकर प्राप्त करा सकता है।
ज्ञान के द्वारा सिर्फ जानकारी है। लेकिन विज्ञान के द्वारा मूल का अनुभव होता है। विज्ञान में ज्ञान के साथ परिक्षण (प्रैक्टिकल ) अनिवार्य है।
ज्ञान पाने के लिए संसार में आते है, मूल के साथ यंहा आते है पर यंहा इस बात का विचार रखना भूल जाते है कि
"सोचो साथ क्या जायेगा और साथ क्या लाये है "
आना विचारों का और जाना विचारों का यही मात्र एक ऐसा भ्र्म जिसे मन समझ नहीं सकता फिर भी
" मौन की जीवन का प्रसार है। "
सामान्य विचारों और पारम्परिक धारणाओं के साथ समय चल रहा है। जीवन चल रहा है / जीवन बिता रहे है कि मर जाना है मतलब शरीर का अंत और यह भी जानते रहते है कि भौतिक पदार्थ (शरीर/संसार ) एक प्रतिबिम्ब है जिसका मूल मानव चेतना है। चेतना को शब्दों से व्यक्त कर सकने का प्रयास विचार (तरंगो ) का सृजन है।
पृथ्वी को वैभवशाली बनाना इन्सान का नेक काम है।
https://youtube.com/shorts/GOQloCvW1Ok?feature=share3
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