अन्न ब्रह्म अस्ति

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जय भारत जय विश्व
जन जन जागो
जन जागो
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भारत एक ऐसा अटूट देश जहां प्रत्येक निवासी एक इस बात का दिल से शुक्रिया करता है और को धन्यवाद देता है कि 
" हम (आप+मैं) सदा एक रहे और भारत  की सामाजिक न्याय व्यवस्था को मजबूत शासन के द्वारा एकजुट करें। 
यद्यपि प्रत्येक ही कोई न कोई धार्मिक विचारधाराएं से और जातिये वर्गीकरण के कारण भिन्न –भिन्न हो और किसी भी धर्मो के मानने वाले लोगों की भीड़ आपस मे बटी हो और एक दूसरे की बातों में से ऐसे तथ्यों को निकाल लेते है, जिससे एक मानव समाज बिखर जाए। 
यही बात राजनीतिज्ञो को और उसी मानसिकता के लोगों को उत्प्रेरित करती है की इस बिखराव से कौन,कितना कब तक भौतिक सम्पदा को एकत्रित कर सके और समाज में त्रिरिस्कारपूर्ण भावनाओं को लोगों के मनों में व्याप्त कर सके । 

जिससे भारत राष्ट्र  छवि के साथ विश्व के 
सामने धूमिल होती रहे और विश्व के सामने भारत की छवि मात्र एक ऐसे देश के रूप में विकसित हो सके जिसमे तरह –तरह की असमंजस्त हो जो धर्म (मानसिक सत्तचरितता) यद्यपि भारत ही वह देश रहा है जिसने विश्व में अमरता के ज्ञान को एक मानव समाज तक विस्तारित किया,है और करता रहेगा। 
अपितु सनातन जिसका अभिप्राय ही बहुतों के समझ में नहीं आएगा जो लगातार सनातन धर्म जिसका उद्देश्य शब्दों द्वारा मात्र इतना ही कह पाना है कि
" था,है और रहेगा धर्म (मानसिक   सतचरितता) फिर भी आम जन मानस जो सदा से अपने मन के (वैचारिक विचारों) अनुसार ही ओत प्रोत में व्यस्त ही रहता है।

निसंदेह वह समय निकट आ चुका है जब हमारा भारत राष्ट्र विश्व में पुनः लोकतन्त्र को प्रसारित करेगा।

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