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कैवल्य दर्शनम

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  जय भारत जय विश्व   वर्तमान में द्वापर युग का 325 वाँ वर्ष चल रहा है।                                     दो शब्द सभी देशों के और सभी युगों के सद्‌गुरु अपने ईश्वरानुसंधान में सफल हुए है। निर्विकल्प समाधि की अवस्था में पहुंचकर इन सन्तों ने समस्त नाम-रूपों के पीछे विद्यमान अंतिम सत्य को अनुभव किया। उनके ज्ञान और आध्यात्मिक उपदेशों के संकलन संसार के धर्मशास्त्र बन गए। शब्दों के बहुवर्णी बाह्य आवरणों के कारण ये एक दूसरे से भिन्न प्रतीत होते हैं, परन्तु सभी परमतत्व के अभिन्न मूलभूत सत्यों को ही शब्दों में प्रकट करते हैं - कहीं खुले ओर स्पष्ट रूप से तो कहीं गूढ़ या प्रतीकात्मक रूप से। मेरे गुरुदेव, श्रीरामपुर निवासी ज्ञानावतार स्वामी श्रीयुक्तेश्वर (१८५५-१९३६), सनातन धर्म के और ईसाई धर्म के शास्त्रों में निहित एकता को समझने के लिए विशेष रूप से सर्वतोपरि योग्य थे। अपने मन के स्वच्छ टेबल पर इन शास्त्रों के पवित्र वचनों को रखकर अंतर्ज्ञानमूलक तर्क बुद्धि की छूरी से वे उनकी चीर-फाड़ कर सकते थे...

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ॐ परमात्मने नमः  जय भारत जय विश्व 💗 जनता कबीरदास जी ने सत्य वचन को इतनी सहजता से कह दिया की उनके शब्दों को लोगों की समझ में आ जाना ही वह है जिसे कोई भी विवरण तो कर पायेगा लेकिन वास्तव में जो अनुभव को यदि कह पायेगा तो यह मात्र वैचारिक विचार ही है जो उसे अनुभवगत होते है।  फिर भी प्रयास करना ही मानव का कर्म है परमात्मा के लिये -------- " जीवत में मरना भला मरे से जाने कोय जा मरने से जग डरैय सो मेरो आनन्द कब मरिहौ कब पैयेहों पूरन परमानन्द  मन मरा माया मरी हंस बेपरवाह  जाका कछु न चाहिये सोइ शहंशाह "            मानव जीवन में अमर जीवन है।  कैसे ? यह एक ऐसा विचार है जिसे सुनकर और शोध कर ज्ञांत/अनुभवित किया जा सकता है न कि इतना कहना सब ईश्वर है।  यह लगभग सभी धार्मिक विचारधाराओं और पवित्र धार्मिक शास्त्रो में कही जा रही है चाहे वह श्रीमद्भगवद गीता , बाइबिल ,कुरान ,गुरु ग्रन्थ साहिब, वेद पुराण और इसी प्रकार जिसमे  भी ईश्वर/परमात्मा /आत्मा  के बारे मात्र शब्दों के द्वारा गयी जा रही है कि हम एक है और अमर है। जैसे प्रत्येक मानव म...